Friday, January 14, 2011

घर की ओर

मैँने ईश्वर देखा नहीँ !
कहीँ भी देखा नहीँ !
जो कहते हैँ
कि ईश्वर होता है
वे भी बता सकते नहीँ
कि ईश्वर कैसा होता है !
वे भी मानकर चल रहे हैँ
कल्पना :ईश्वर को !

लेकिन क्या ;
ईश्वर कल्पना हो सकता है !
जो प्रकाश भी है ;
अंधकार भी है !
जो सत्य भी है ;
असत्य भी है !
वह कल्पना कैसे हो सकता है !

इस रहस्य को खोजना होगा
इससे पहले कि शाम हो जाए
चलना होगा उस राह पर
जो घर की ओर ले जाती है !