Friday, February 17, 2012

Ascent


Open
your mind
and
get
the power
of spirit .
A man
gets energy
by food .
But
his
internal energy
produces by
invention
of
his
deep existence .
A shadow
changes
in a day
many times .
A river
flows
up to down .
But
we attempt
for
ascent .
Ascent
of thinking
gives us
unknown powers .
Search
your insight
and
view
that
you have won.

कैद


वह
समय
अब न रहा . . .
देखता था
जब मैँ
पत्तोँ को
धीरे-धीरे
हिलते हुए ;
बादलोँ को
क्षितिज की ओर
चलते हुए !
क्योँकि
जीवन
छोटे से
लक्ष्य मेँ
सिमट गया है !
कैद हो गया हूँ
मैँ
विचारोँ के
पिँजरे मेँ !
ये विचार
मेरे नहीँ हैँ ,
समाज के हैँ !
लोग कहते हैँ
कि कुछ
करना चाहिए !
लेकिन
यही सोच
छीन लेती है
स्वतंत्रता
अंतर्मुक्ति की !
मैँ
भीतर से
कितना भी
मुक्त रहूँ ;
कैद रहना होगा
मुझे
बाहर के
नियमोँ मेँ !
कोई नहीँ जानता
मैँ कौन हूँ !
खुद के
चेहरे को
देखता हूँ
दर्पण मेँ
तो लगता है
ये चेहरा
काल्पनिक है !
अंदर से
विचारोँ की
सुन्दरता
करती है
प्रयास
बाहर
झांकने का ;
तब
हो जाता है
सृजन
किसी
नई सोच का !

अस्तित्व


जीवन
खोजा नहीँ जाता !
सूर्य की किरणोँ मेँ ऊर्जा होती है
जो
महसूस की जाती है !
हर पल
हमेँ
सतर्क रहना पड़ता है
कि हम
जीवन
जी रहे हैँ कि नहीँ !
क्योँकि
ये जीवन
अनिश्चित है !
कल की
आस्था पर ,
विश्वास पर
चल रहे हैँ
सभी !
ये कल
सुनहरे सपनोँ से
भरा है !
यह
टेक्नोलाजी के
विस्तृत
स्वरूप को
अपने मेँ
समाविष्ट किये है !
लेकिन
यदि हम
कल की
कल्पना मेँ
खोये हैँ
तो
हमारा
यह जीवन
व्यर्थ हो रहा है !
अनिश्चितता को जीवन की
परिभाषा
मान लेना
तो सही नहीँ !
लेकिन
यह जीवन
विविधताओँ से
भरा है !
उन
विविधताओँ मेँ
अस्तित्व
कहीँ
खो जाता है !
उस
अस्तित्व को
बनाये रखना
हमारा
कर्तव्य है !
यह कर्तव्य
जरूरी है ,
क्योँकि
यह जीवन
हमारा है !

शान्ति


कितनी शान्ति है ,
तालाब के
इस ओर !
लगता है
तरंगेँ
रुक गयी हैँ !
झरने के
जल मेँ
गति होती है ;
प्रवाह का
मधुर
संगीत होता है !
लेकिन
तालाब के
इस जल मेँ
लगे
कमल के पत्ते
बुला रहे हैँ
मुझे
अपनी ओर !
पीपल की
इस हवा मेँ ,
जाने
किस ओर
जा रहा हूँ
मैँ !
तितली के
खुलते
और
बंद होते
पंखोँ
को
देखकर
लगता है
ये
आसमान
को
खुद मेँ
समेट रहे हैँ !
अस्तित्व
के
मोह मेँ
हर कोई
जीवित है !
नदी किनारे
लगे
इन वृक्षोँ
की
स्थिरता
कई
बर्षोँ तक है !
ये
नहीँ जानते
नदी
बहुत लम्बी है !
इनका
जीवन
छोटा है !
लेकिन
जीवन
इनके
पत्तोँ मेँ
प्रकाश
के
संश्लेषण
से
बनता है !
नदी का
जल भी
पहुँच जाता है आसमान मेँ
वाष्प बनकर !
घास पर
बिखरी
ओस
परिवर्तन
की
प्रतीक है !
संघर्ष
भी
परिवर्तित
हो
जाता है
शान्ति मेँ
एक दिन !
अशोक
के
कलिँग
युद्ध
की तरह ;
जाग
जाता है
मनुष्य !
भाग जाता है
भीड़ से
अकेलेपन
की ओर ;
बुद्ध की
तरह
पा लेता है
उद्देश्योँ को !

पुकार


प्रिय !
तुम मुझे
बहुत अच्छे
लगते हो !
जब भी तुम्हे
देखता हूँ ,
लगता है कि
स्वर्ग मेँ हूँ
और खड़ी है
सामने
कोई अफ्सरा !
मुझे नहीँ पता
पर शायद मुझे
तुमसे
प्यार हो गया है !
यह प्यार
मुझे
अपनोँ से
दूर कर रहा है !
मैँ निहार रहा हूँ
तुम्हे
और खो रहा हूँ
रहस्यमयी
आकाश मेँ ;
जहाँ दूर खड़ी होकर
तुम मुझे
पुकार रही हो !
किन्तु तभी ,
सुनाई देती है
माँ की पुकार
‘बेटा कहाँ हो ?’
और जाकर
छुप जाता हूँ
इस संसार के
सबसे बड़े
आँचल मेँ !!

एक और खोज


मेरी यह खोज
पूरी हो गई है !
लेकिन
मैँ यहाँ आकर
नहीँ रुक सकता ,
मुझे चलना होगा !
क्षितिज की
कल्पना से दूर
खोज करनी होगी
अन्तरिक्ष की !
और पाना होगा
एक नये जीवन को ,
जो मुझे देगा
नये विचार
नयी संस्कृति !
और एक नयी चाह
सफलता की ओर
निरंतर बढ़ने की !

उड़ान


चाहता हूँ
कुछ लिखूँ !
समझ
नहीँ पाता
कुछ भी ;
सोच
नहीँ पाता
क्या है
जिँदगी !
शाम को
घोँसलोँ की
ओर
जाने वाले
पँछियोँ से ;
समुद्र
की
सतह पर
उछलकूद करती
लहरोँ से
पूछता हूँ !
बगीचे मेँ
पौधे पर
कोई
कमल
खिलने का
इंतजार
कर रहा है !
धुएँ
की
उड़ान से
सीख रहा है
मन ;
वायुयान
को
बादलोँ के
पार
पहुँचाना !

नया दिन


चर्च की
इस शांति मेँ ,
खुद से
दूर
भागना
चाहता हूँ मैँ !
आज
नये बर्ष का
नया दिन है !
लगता है
कि
बुरे विचारोँ को
कहीँ
छोड़ आया हूँ !
भूल जाना
चाहता हूँ
नफरत को !
दिल के
उस
रास्ते को
खोलकर
रखना
चाहता हूँ ,
जहाँ
प्रेम है
मनुष्योँ मेँ !
परमपिता
अपने बच्चोँ से
प्रेम करता है !
फूल की
खुशबू मेँ
खुशियोँ को
कैद कर
जिन्दगी
बहुत
मुश्किल हो जाती है!
आशा का
प्रकाश
सम्भाले हुए है
मुझे
पवित्रता के
बीच !
पता नहीँ
क्योँ
जिन्दगी मेँ
कुछ
राहेँ
उलझती
जाती हैँ !
हर
मील के बाद
लड़खड़ाते कदमोँ की
विश्राम की
तलाश
बढ़ जाती है !
भागते रहने से
समस्याएँ
रुकती नहीँ हैँ !
शान्ति
पत्तोँ के
हिलने से
नहीँ
डरती !
पता नहीँ
क्योँ
मैँ
शान्त होता
जाता हूँ ,
जब भी
लगता है
कि मैँ
यह
क्या
कर रहा हूँ !
स्वर्ग को
पाने की
चाह
बहुत छोटी है !
मैँ तो
बस
सत्य की
एक
झलक को
छूना
चाहता हूँ !
शायद
नवबर्ष मेँ
कुछ
नया हो !
पुराने
पन्नोँ को
फिर
पढ़ना चाहता हूँ !

पंख


हवाई जहाज
के
पंख
खुलते और
बंद
नहीँ होते !
क्योँकि ये
मन की
ऊर्जा से
नहीँ चलते !
ये तो
डिपेन्ड हैँ
मैकेनिकल
स्ट्रक्चर पर !
उड़ाता है
इन्हे
कोई और
जानता है
जो
उड़ान का
महत्व !
मनुष्य के
पास
पंख नहीँ होते
लेकिन
होती है
इमेजिनेशन !
इमेजिनेशन
की
उड़ान
जब
मिल जाती है
साइंस मेँ ,
हो जाती है
शुरुआत
खोज लेने की
उसको ,
जिसकी
आवश्यक्ता
थी
हमेँ
बर्षोँ से !

जिंदगी


जिंदगी
सिगरेट के
कश मेँ
जलती हुई ;
प्यार के
नशे मेँ
धुँए सी
संभलती हुई ;
जाने
किस ओर
जा रही है !
मुझे
उसके
करीब देखकर
हँसती हुई ;
दूसरे के
जाल मेँ
मछली सी
फँसती हुई ;
जाने क्योँ
मुस्कुरा
रही है !

अंतर्दृष्टि


मंजिलोँ को
पाने की
एक कोशिश
फिर
जाग गयी है !
आशा की किरण
हर सुबह
आती है
दिल के
कमरे मेँ !
इस कमरे मेँ
मिलता है
सुकून मुझे !
अंतर्दृष्टि की
चमक मेँ
छिप जाता है व्यक्तित्व !
तब खोजता हूँ
मैँ
खुद को
सपनोँ मेँ !

शून्य


खुद से
बहुत दूर चले जाओ !
अंतरिक्ष के शून्य मेँ
कुछ ढूंढ़ने की
एक कोशिश
तुम्हे बनाएगी
और सुन्दर !
सुन्दरता
छिपी है
तुम्हारे ही अन्दर !
बस विचारोँ मेँ
गहरे जाने का
कोई
प्रयास
करना होगा !
पाना होगा
उस
स्थिति को
जो खीँचती है
तुम्हे संसार से !

महत्वाकांछा


कभी-कभी
बहुत मुश्किल होता है
खुद को समझ पाना !
जिँदगी
मकसदोँ मेँ ;
गुम होती राहोँ मेँ
सिमट जाती है !
सत्ता के गलियारोँ मेँ
कुछ होने का प्रयास करते ,
हजारोँ की भीड़
उछल पड़ती है
अपने नेता को देखने !
तब मुश्किल होता है
निर्णय ले पाना
कि दूर खड़े होकर
देखा जाए
या फिर
करीब होने की
कोशिश की जाए !
बरगद के पेड़ पर
उछलकूद करती
गिलहरी को याद कर
मैँ सोचता हूँ
कि कई सारी बातेँ
छोटी होती हैँ ,
महत्वहीन होती हैँ !
उस महत्वहीनता से दूर
अपना महत्व
खुद बनाए रखने को
मेरा अतीत कहता है !
प्रश्न भी मैँ हूँ ,
उत्तर भी मैँ हूँ !
फिर भी इन
नये प्रश्नोँ मेँ
उलझ जाता हूँ !
तब मैँ कुछ नहीँ कर सकता !
केवल जा सकता हूँ
बचपन की जिँदगी मेँ ,
सुनहरे कल मेँ !

राह


लौट आया हूँ
वहीँ
जहाँ से
शुरू किया था
चलना राह पर !
राह
कुछ
बदल गई है !
छोटे पत्थर
घास से
कुछ
ढक गये हैँ !
तालाब के
किनारे
पीपल मेँ
बना लिये हैँ
पक्षियोँ ने
कुछ नये
घोँसले !
खेतोँ मेँ
लगे
गेहूँ मेँ
आ गई है
चमक !
सौँदर्य
विखर
रहा है
प्रकृति की
गोद मेँ !
परन्तु
मैँ
सोच रहा हूँ
कि
रास्ता
छोड़ देता है
हमेँ कहाँ ?
मंजिल की
चाह मेँ
खो गये हैँ
सपने !
घर
लौटते
इन
पक्षियोँ को
देखकर
सोचता हूँ
शान्ति के
प्रयास मेँ
बहुत
दूर
आ गया हूँ !
लेकिन
लौटकर
अब
कहाँ जाऊँ ?
धूप के
अस्तित्व मेँ
जीवित है
अभी
मेरा विश्वास !
कि
मैँ
तुम्हे
खोज सकता हूँ !
रात की
चाँदनी मेँ
मैँ
तुम्हारे
पास आकर
तुम्हारी
उँगलियोँ का
स्पर्श
पाना चाहता हूँ !
करना
चाहता हूँ
कुछ बातेँ
जिनमेँ
छुपी है
राह
सत्य की !

घर्षण


बाढ़ मेँ
डूबे हुए
घर
की
छत पर
बैठे
लड़के की
आँखोँ मेँ
संघर्ष की
चमक है !
जिंदगी
को
अनेकोँ ने
सारी रात
किसी
पेड़ पर
गुजारा है !
आसमान
मेँ
निकला
सूरज
शाम को
अस्त
हो जाता है !
पर्यावरण
को
छूता है
जब
सिगरेट का
धुआँ ;
हो जाता है
कैँसर
वायुमंडल को !
धूल के
उड़ने से
बच्चोँ
के
बालोँ की
सुन्दरता
बढ़ जाती है !
नहरोँ
के
किनारे
खेत मेँ
रहते
किसी
परिवार का
जीवन
करता है
इंतजार
पानी के
बढ़ने का !
शाम की
रोटी
को
नमक के
साथ
खाने मेँ
कितना
मजा
आता है !
यही है
जिँदगी
जो
सिखाती है
कि
हर सांस मेँ
खुशी को
महसूस करो !
काँटोँ पर
चलकर
पैरोँ की
ऊर्जा
बढ़ जाती है !
लम्बा सफर
तय
होता है
लाखोँ
कदम
चलकर !
किसी
पीपल के
नीचे
बसे
देवता मेँ
है
मुझे
विश्वास !
समाज की
परंपराएँ
हमारे पास
वर्षोँ से हैँ !
कोई
आग पर
चलकर
करता है
प्रयोग
आस्था का !
कोई
भिखारी
अपने
कटोरे के
सिक्कोँ को
देखता है ;
याद
आता है
कि
समझ का
गलत
उपयोग
किया है
उसने ;
लेकिन
पा लिया है
उसने
संतुष्टि को !
मोक्ष का
प्रयास
करते
रहता है
जीव ;
चौरासी करोड़
योनियोँ मेँ
घूमता है !
हर जन्म
के
साथ
निखरता है
कर्म !
आता है
जीव
अपने
लक्ष्य के
करीब
धीरे-धीरे !
मृत्यु
केवल
शरीर का
परिवर्तन
नहीँ करती ;
बनाती है
मनुष्य को
पुनर्जाग्रत भी !
स्वप्न मेँ
रंग
नहीँ होते !
जीवन
मेँ
रंगोँ को
भरने की
कोशिश
बनाती है
इंद्रधनुष
चरित्र का !
हार
और
जीत मेँ
उलझा
रहता है
जीवन !
कल
की
कल्पना मेँ
करता है
मनुष्य
खोज
प्रकाश की !
वेदोँ का
अध्ययन
छोड़
पढ़ता है
साइंस को !
साइंस
उत्पन्न
हुआ है
वेदोँ से ही !
जीवन का
अस्तित्व
तब
तक है
जब तक
हम
जानते हैँ
खुद को !
भूल रहे हैँ
हम
संस्कारोँ को ,
उत्पन्न
करना होगा
इन्हे
विचारोँ के
घर्षण से !
इसी मेँ है
सब कुछ ,
यही है
हमारे
उद्देश्य
का
प्रमुख
विषय !

आशीर्वाद


हे
अदृश्य शक्ति !
तुम्हारे बिना
मैँ कुछ भी तो नहीँ !
जब भी पढ़ने बैठता हूँ ,
पेन चलते चलते रुक जाता है !
मैँ मशीनोँ के बारे मेँ
नहीँ लिखना चाहता !
मैँ तो तुम्हारी खूबसूरती को
पन्नोँ पर उतारना चाहता हूँ !
लेकिन इस संसार मेँ
कोई भी
बिना कर्तव्य किये
नहीँ रह सकता !
यह वेदोँ का ;
तुम्हारा कथन है !
मैँ संसार मेँ रहना चाहता हूँ !
तुम्हारे प्रकाश मेँ चलना चाहता हूँ !
इसलिए
कभी-कभी
धूल चढ़ी पुस्तकोँ को
साफ कर लेता हूँ !
उसे भी
तुम्हारा ही
अंश मानकर
खुद को
कर्म मेँ
शामिल कर लेता हूँ !
जीव की यात्रा
हजारोँ बर्षोँ की है !
मनुष्य का शरीर भी
सहज ही प्राप्त नहीँ होता !
इसलिए चाहता हूँ ,
तुम्हारी इस
अदृश्य प्रतिमा को
कॉलेज के कैम्पस मेँ ,
स्टडी की टेबिल पर
या फिर
पुस्तक के अक्षरोँ मेँ
देखता रहूँ !
इसकी ऊर्जा से खुशी मिलती है !
फिर
खुशी का कंबल ओढ़कर
सोना चाहता हूँ !
सपनोँ से बनी
तपस्या मेँ
तुम्हारा आशीर्वाद होगा !
एक नई दुनिया के
सृजन मेँ
खो जाना चाहता हूँ ….

Sign of Love


A dry rose which kept in
A Book ,
asks to the pages ;
Why was he kept here ?
The reply of the pages
is that
He opens me to see you
and reads many sentences .
He gets inspired
from
words of auther ,
He gets energy
for some days .
He sees her in you ,
He feels close to his love .
He remembers his love
and tries to find his dream
In the way of success.
One day
when he will be successful ,
The reason of his success
is you know ?
‘The book with dry rose .’
The flower was silent now ,
he did know his importance .
He was
“Sign of Love”….

शायद कोई……


कभी तो सोचा होगा
तुमने भी
कि तुम्हारे
जीवन का
उद्देश्य क्या है ?
अठारह बर्ष
पढ़ने के बाद
शायद
समझ मेँ
कुछ आया हो !
जिँदगी की राहोँ मेँ
खुद को
उलझा हुआ
महसूस किया हो
शायद तुमने !
जिँदगी की रेत पर
समय की कलम से
कुछ लिखा था
मैँने !
यादोँ की हवा
खीँच लाई है मुझे
आज फिर उस ओर !
कुछ सुनाई दे रहा है !
नदी किनारे पेड़ के
पत्तोँ से
संगीत आ रहा है !
मछलियोँ की
उछलकूद भी
जिँदगी की दौड़ से
कम नहीँ लगती !
शब्दोँ की पतंग को
काटना चाहता है
हर कोई !
आया था अभी
थोड़ी देर पहले
कोई !
जानता हूँ मैँ
शायद उसे !
कहता है कि
फिल्म का हीरो
उतना अच्छा नहीँ है
जितना दिखाई देता है !
प्यार की भी कोई
सीमा होती है ?
प्यार
बिना स्पर्श भी
महत्व रखता है !
ट्यूबवैल के
गहरे गड्डे मेँ
गिर गया है
कोई बच्चा ,
तो जरूरत है
उसे बाहर निकालने की !
शायद मैँ
कुछ सीख गया हूँ !
अच्छे होने का
दिखावा करने लगा हूँ !
खुद को सुधारने की
कोशिश तो मैँने
कभी नहीँ की !
शायद मैँ अपने
उद्देश्योँ को जानता हूँ !
छुआ जाता है
सफलता को
मेहनत के सहारे !
तुम्हारी तस्वीर
बनती है खुदा
मेरे दर्द के कैनवास पर !
खुद उतर आओ
मुझसे मिलने
तुम कभी !
क्या पता
देख ले तुम्हे
शायद कोई…..

संघर्ष


मैँने सोचा कहीँ घूम आऊँ !
जिँदगी को
पेड़ की
छाया मेँ देखा !
तालाब के पानी मेँ देखा !
घास पर पड़ी
ओस मेँ देखा !
हर जगह शान्ति थी !
लेकिन मैँने
मनुष्योँ को भी देखा !
वे अशान्त थे !
दोस्तोँ को
गर्लफ्रेन्ड पर
बहस करते देखा !
स्टूडेन्ट्स को
किताबोँ से
परेशान देखा !
मैँने देखा कि सब
कैद हैँ
उस सोच मेँ
जो कहती है कि
कुछ बनो !
खुद को भी आईने मेँ देखा !
चेहरे पर शान्ति थी !
लेकिन सोच मेँ
संघर्ष था !
क्या सही है ?
यही विषय था !
इंटरनेट पर
मैँ खुद के
अकेलेपन को
खोज रहा था !
तभी
किसी ने
मुझे सर्च किया !
वह
अब भी
मेरा दोस्त है ;
लेकिन
किसी को
दिखाई नहीँ देता !
वह मुझसे कहता है
दुनिया बदल गई है !
मैँ कहता हूँ
तुम बदल गये हो !
अब किसी को नहीँ रोकते !
अगरबत्ती के धुएँ मेँ
अंदर की बुराईयाँ
छिप जाती हैँ !
कहते हैँ
आज जो दिखता है
वही बिकता है !
वही खरीदा भी जाता है
जो न्यू हो !
सुकून पाने के लिए
मैँने भी
म्यूजिक प्लेयर खरीदा !
म्यूजिक की धुन
कहती है
दो पल के लिए ही सही
जिँदगी मेँ
सफलता जरूरी है !
वही
जीवन का
सही अर्थ समझाती है !
नहीँ तो
दौड़ता रहता है
मनुष्य
इधर से उधर ;
पर्स मेँ रखा
ए टी एम
खाली हो जाता है
एक दिन !