Wednesday, October 22, 2014
Sunday, May 18, 2014
फिर वो सुबह देखी मैंने ,
जब मैंने कोयल को गुनगुनाते सुना ;
सूर्य की किरणें जब आसमां मैं फैलने को थीं ;
घास पर बिखरे मोतियों को देखा ;
कई दिनों तक सोने के बाद ,
मैंने गहरी साँस ली ;
खिड़की से झाँका , बाहर की ओर ;
पीपल मुस्कुरा रहा था;
गिलहरी उछल कूद रही थी ;
बाकई अद्भुत था ;
कुदरत का एक छोटा सा झरोखा,,,,,,,,,,,,,,,
जब मैंने कोयल को गुनगुनाते सुना ;
सूर्य की किरणें जब आसमां मैं फैलने को थीं ;
घास पर बिखरे मोतियों को देखा ;
कई दिनों तक सोने के बाद ,
मैंने गहरी साँस ली ;
खिड़की से झाँका , बाहर की ओर ;
पीपल मुस्कुरा रहा था;
गिलहरी उछल कूद रही थी ;
बाकई अद्भुत था ;
कुदरत का एक छोटा सा झरोखा,,,,,,,,,,,,,,,
Monday, May 12, 2014
Thursday, April 3, 2014
क्या मेरा है यहाँ;
और क्या तेरा;
हर तरफ है बस
उसका ही बसेरा।
जहाँ के ये किस्से;
रह जाते अक्सर अधूरे;
हम अपनी बंदिशों में;
ढल जाते हैं पूरे।
कैसा ये जीना - मरना;
कैसे ये सिलसिले;
उड़ूँ मैं कैसे अब ;
पर जो मेरे जले।
खुशियों के बांधों में;
बाँध लिए जो गम;
होंठों की मुस्कुराहटें हैं;
पलकें फिर भी नम।
कैसी ये मंज़िल है;
अपनी फिर भी अनजान;
छोड़ दिए हैं वक़्त ने;
लम्हों के ये निशां।
जाने फिर क्यों हम;
चल देते हैं उसी ओर ;
उलझी हुई तलाश जहाँ;
कर रही खामोश शोर।
और क्या तेरा;
हर तरफ है बस
उसका ही बसेरा।
जहाँ के ये किस्से;
रह जाते अक्सर अधूरे;
हम अपनी बंदिशों में;
ढल जाते हैं पूरे।
कैसा ये जीना - मरना;
कैसे ये सिलसिले;
उड़ूँ मैं कैसे अब ;
पर जो मेरे जले।
खुशियों के बांधों में;
बाँध लिए जो गम;
होंठों की मुस्कुराहटें हैं;
पलकें फिर भी नम।
कैसी ये मंज़िल है;
अपनी फिर भी अनजान;
छोड़ दिए हैं वक़्त ने;
लम्हों के ये निशां।
जाने फिर क्यों हम;
चल देते हैं उसी ओर ;
उलझी हुई तलाश जहाँ;
कर रही खामोश शोर।
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