क्या मेरा है यहाँ;
और क्या तेरा;
हर तरफ है बस
उसका ही बसेरा।
जहाँ के ये किस्से;
रह जाते अक्सर अधूरे;
हम अपनी बंदिशों में;
ढल जाते हैं पूरे।
कैसा ये जीना - मरना;
कैसे ये सिलसिले;
उड़ूँ मैं कैसे अब ;
पर जो मेरे जले।
खुशियों के बांधों में;
बाँध लिए जो गम;
होंठों की मुस्कुराहटें हैं;
पलकें फिर भी नम।
कैसी ये मंज़िल है;
अपनी फिर भी अनजान;
छोड़ दिए हैं वक़्त ने;
लम्हों के ये निशां।
जाने फिर क्यों हम;
चल देते हैं उसी ओर ;
उलझी हुई तलाश जहाँ;
कर रही खामोश शोर।
और क्या तेरा;
हर तरफ है बस
उसका ही बसेरा।
जहाँ के ये किस्से;
रह जाते अक्सर अधूरे;
हम अपनी बंदिशों में;
ढल जाते हैं पूरे।
कैसा ये जीना - मरना;
कैसे ये सिलसिले;
उड़ूँ मैं कैसे अब ;
पर जो मेरे जले।
खुशियों के बांधों में;
बाँध लिए जो गम;
होंठों की मुस्कुराहटें हैं;
पलकें फिर भी नम।
कैसी ये मंज़िल है;
अपनी फिर भी अनजान;
छोड़ दिए हैं वक़्त ने;
लम्हों के ये निशां।
जाने फिर क्यों हम;
चल देते हैं उसी ओर ;
उलझी हुई तलाश जहाँ;
कर रही खामोश शोर।