Wednesday, August 11, 2010

डर

कोई नहीँ है ;
चारोँ ओर
खुला आसमान है !
फिर भी हम
पंखोँ को खोलकर
उड़ने से डरते हैँ !

हाँ , हम डरते हैँ !
डरते हैँ ;
अनन्त मेँ
गुम न जाएँ
कहीँ !

हम
सत्य से
दूर भागते हैँ
क्योँकि हम
संसार को
सत्य मान वैठे हैँ !