Sunday, May 18, 2014

फिर वो सुबह देखी मैंने ,
जब मैंने कोयल को गुनगुनाते सुना ;
सूर्य की किरणें जब आसमां मैं फैलने को थीं ;
घास पर बिखरे मोतियों को देखा ;
कई दिनों तक सोने के बाद ,
मैंने गहरी साँस ली ;
खिड़की से झाँका , बाहर की ओर ;
पीपल मुस्कुरा रहा था;
गिलहरी उछल कूद रही थी ;
बाकई अद्भुत था ;
कुदरत का एक छोटा सा झरोखा,,,,,,,,,,,,,,,



Monday, May 12, 2014

समुंदर के भीतर दुनिया बसती है ;
क्या हमारे भीतर भी समुंदर बसता है ;
वही समुंदर जिसमें मछलियाँ उछलती हैं ;
हम लहरों के शोर में ;
खामोशी को भूल जाते हैं  !