Saturday, November 5, 2016

सर्वस्व

अब कुछ न रहा ! हर कोशिश हार गयी । लड़ाई ख़त्म हो गई मंज़िल से ।।।। कोई बात ही न रही ।।। हौंसलों को जगाने का ज़ज़्वा न रहा ।।।। अब सौंप दी है पतवार तुझे ऐ मालिक ......।।। जहाँ चाहे ले चल...
जैसे चाहे चला मुझे.. पकड़ ली है मैंने तो उंगली तेरी ।।
अब कोई मुश्किल नहीं ... कोई डर भी नहीं... कुछ पाना नहीं ... खोने की चिंता है .... जो है ... सब तेरा है ... छोड़ दी मैंने डोर .... पतंग की ।।। जहाँ हवा उड़ा ले जाये....
बहुत हाथ पैर चलाये... बटोरने के लिए... कुछ हाथ न आया ।।। कोसों चला ... ढूंढने के लिए... मिला ही नहीं  ।।।।
अब थक गया हूँ मालिक ... रुक गया हूँ ... न चल पाउँगा अब .... अब तो सब खो गया है...
खड़ा हूँ तेरे सामने ।।।। तुझे प्रणाम भी कैसे करूँ... हाथ भी तेरे हैं .... झुक भी कैसे जाऊं तेरे सामने .. तन पर मेरा नियंत्रण नहीं है ।।।।
झुकाये भी तू ... उठाये भी तू....  चलाये भी तू.... गिराये भी तू.... मैं भी तू ... तू भी तू... सब तू।।।।।
फूल तू ... कांटे भी तू ... पहाड़ भी तू .... खाई भी तू ... जीते भी तू ... हारे भी तू ...
ये खूबसूरत हवाएँ तेरी ...आँधियाँ भी तेरी...
कहे भी तू... सुने भी तू ...
सर्वस्व तू.....