Saturday, September 10, 2011

भीड़


बहुत परेशानी होती है अब
अकेलापन ढूँढने मेँ ! जब से
‘मैँ’
राजनीतिक
हो गया हूँ ,
समझने
लगा हूँ
कि
हर व्यक्ति का
महत्व होता है !
मैँ
तुमसे दूर
नहीँ
जाना चाहता !
लेकिन
ये जनता
मुझे
खीँचकर ले जा रही है!
ये जनता
मुझे
कंधोँ पर
उठाए है !
महसूस
कर रहा हूँये कल
किसी और का
होगा!
लेकिन
मैँ भी
कल
यहाँ नहीँ रहूँगा !
छू लूँगा
आसमान को !
पा लूँगा
अकेलेपन के
असीम आनंद को
उस प्यार को,
जो
राजनीतिक है !

The Earth


Earth is my book ,
Experience is my teacher ,
I am a student of life ,
I try to write something for universe…
But I don’t have pen of truth..
Will you help me ?

प्रोफाइल


मैँने
तुम्हे
देखा नहीँ,
पहचाना भी नहीँ !
इंटरनेट की
तुम्हारी
यह
प्रोफाइल
सच कहती है ?
तुम्हारी
और
मेरी
इस
दोस्ती का
मतलब क्या है ?
मेरी प्रोफाइल
पूछती है…….

स्पीड


 मैँ घड़ी नहीँ पहनता!
इसका मतलब
यह नहीँ
कि
मैँ
समय का पाबंद
नहीँ हूँ!
मैँ
जानता हूँ
कि
समय को
हम
घड़ी मेँ
कैद
नहीँ कर सकते!
घड़ी
बताती है
कि
दुनिया
तुमसे आगे
भाग रही है!
लेकिन
मुझे
इससे क्या?
मैँ तो
चलता हूँ
अपनी स्पीड से!

पागलपन


मशीनोँ मेँ मत खो जाओ ,
स्विच ऑन करो और ऑफ कर दो ;
जो समझ मेँ आए समझ लो !
केमिकल्स को हाथ से मत छुओ
और इलेक्ट्रानिक वर्ल्ड से
बहुत दूर भाग जाओ !
फिजिक्स को मत पढोँ
और मेथ्स के फारमूलोँ को मत रटो !
विल्डिँग्स मेँ मत रहो !
यही जिँदगी की कम्युनिकेशन स्किल्स है !

लेकिन यह सब क्लास मेँ ,
टेबिल के सामने बैठकर
और टीचर की आँखोँ मेँ
देखकर होना चाहिये !
जो भी हो रहा है ,
विचारोँ से विचारोँ को टकराने दो !
तब सोच का पुनर्जन्म होगा !
माँ की गोद से छूटकर
बच्चा
कूद जाता है ,
प्रकृति के
हरे भरे आँचल मेँ ,
नदियोँ के प्रवाह मेँ ,
सूर्य की
साँझ ढलतीध्यान रखो
कि तुम
सिर्फ दर्शक हो !
तुम इस फिल्म के
डॉयरेक्टर नहीँ हो !
तुम तो यहाँ
मूड फ्रेश करने आए हो !
लेकिन यह सब
लेब मेँ
एक्सपेरिमेन्ट करते ,
थ्योरी लिखते ,
और एक स्टूडेन्ट के
दायित्व का
बोझ ओढ़े
होना चाहिए !
बस याद रखो
कि तुम
जीवन के स्टूडेन्ट हो !
जीवन रहस्यमयी है !
रहस्यमयी वस्तुएँ
खुद अपना रहस्य
उजागर करती हैँ !जीवन है ध्यान ,
आनंद और सुकून !
अनुभव करो !
प्यार करो !
नफरत करो ,
पर कुछ समय बाद
खुद के हो जाओ !
जहाँ न प्यार है
न नफरत है !
सिर्फ शांति !
शांति का कोई अस्तित्व नहीँ होता !
मौन रहो
और विचारोँ को
उठते और मिटते देखो !
फुरसत मेँ हो या ऑफिस मेँ ,
यही करते रहो !
यही पागलपन की सीमा है
और ध्यान का अभ्यास !
चलते रहो
और तुम पा लोगे
वह
जो तुम पाना चाहते हो !
कर्मयोग का मर्म
समझने की
एक अवस्था !
बस इंतजार करते रहो ,
अंतर्मन मेँ विस्फोट होगा
और समस्याएँ
नष्ट हो जाएँगी !

लालिमा मेँ
एक हो जाता है !
तुम भी एक हो जाओ !
भूल जाओ कि तुम हो !
फूलोँ की खुशबू को महकने दो !
भीड़ को
आधुनिकता की ओर
भागने दो !


कैरियर


मैँने रात को डराबना सपना देखा !
खुद को समस्याओँ से घिरा पाया !
सुबह एक्जाम देने बैठा
तो पाया
मुझे कुछ नहीँ आता !
प्रश्नोँ मेँ शब्दोँ से उलझता रहा !
सोचा , काश ! कुछ पढ़ लिया होता !
किताबोँ मेँ जिँदगी नहीँ मिलती !
न ही सुकून मिलता है !
पर कैरियर की राह मेँ
किताबोँ का बाजार होता है !
बातोँ को समझने का
व्यर्थ प्रयास करता रहा !
मैँ मोबाइल के गेम्स से
मैथ्स के सवाल नहीँ कर सकता !
न ही अगरबत्ती के धुँए से
नॉलेज समेट सकता !
मैँने सपनोँ मेँ एक कार खरीदी !
उसमेँ गर्लफ्रेन्ड को बैठाया !
उसके होँठोँ को किस किया !
फिर उठा तो पाया
मैँ कमरे मेँ ही था !
सूरज की किरणेँ
झरोखे से अंदर आ रही थीँ !
मुझसे कह रहीँ थीँ
जाग जाओ !
लेकिन मैँ जागा हुआ था !
किताबेँ सामने रखी थीँ !मैँने सोचा
पढ़ तो बाद मेँ भी लूँगा !
अभी थोड़ा बाहर घूम आता हूँ !
बाहर से कुछ नये विचार मिले !
उनमेँ ज्यादा पैसे कमाने की राह थी !
मैँ भटक गया !
सोच को दिन भर
दिमाग पर लादकर चलता रहा !
शाम को पता चला
मैँ वहीँ हूँ , जहाँ सुबह था !
दुनिया कुछ कर रही थी !
मैँ अब तक सोच रहा था !
सपनोँ की दुनिया से दूर
आने की कोशिश कर रहा था !
जिँदगी ने कहा – तुम कौन हो ?
जो मुझे बुलाते हो !
अगर तुम मुझसे प्यार करते हो
तो हर शाम मुझसे मिला करो !
लेकिन फारमूलोँ का एक
नया गुलाब लेकर आया करो !
मैँने जिँदगी से मिलना छोड़ दिया !
आसमान मेँ शाम को उड़ती
चिड़ियोँ से लेकर ,
जल मेँ उछलकूद करती
मछलियोँ को देखा !
हर जगह जिँदगी कैद थी !
मैँ कैद नहीँ होना चाहता !
लेकिन हर कोई मुझेतब मैँने पढ़ना शुरू किया !
एक्जाम दिया और रिजल्ट आया !
मैँ फर्स्ट डिवीजन था !
अब मैँ अकेला नहीँ था !
मेरे साथ घर बालोँ की खुशी थी !
लेकिन एक और बादल
मेरे ऊपर गिरा !
मुझसे कहा -
अगली बार और अच्छे मार्क्स लाना !
मेरे ऊपर नियंत्रण रखा गया !
ताकि मैँ सक्सेजफुल बन सकूँ !
मैँ सफल बनना चाहता था !
सपनोँ से मंजिल तक
पहुँचना चाहता था !
लेकिन मंजिल कहाँ थी
यह मुझे नहीँ पता था !
बस एक लगन थी !
मैँ आगे बढ़ना चाहता था !
एक एक कदम मुझे
आगे बढ़ाता गया !
अभी मैँ कहाँ हूँ ;
यह भी मुझे नहीँ पता !
बस वही कर रहा हूँ
जो मैँ करना चाहता हूँ !
पूरी स्वतंत्रता से
विचारोँ से मुक्त होकरमैँ देख रहा हूँ ,
खुद को अंदर से!
झांक रहा हूँ ,
सुकून के कमरे मेँ !
ताकि छू सकूँ मैँ
अनन्त को अन्त से !….
नये विचार
उठ रहे हैँ , मिट रहे हैँ !

स्वतंत्र नहीँ देख सकता !
सबकी तरह मेरी भी किस्मत
किताबोँ मेँ कैद हो गई !


जिँदगी . . .


घास पर पड़ी
ओस की बूँदोँ से
इंद्रधनुष बनता है !
उन्ही बूँदोँ पर
शरारत करती है
गिलहरी !
कभी मैँ भी
ऐसे ही
उछलता था ;
धूल भरे हाथ
इन बूँदोँ से धोता था ,
आसमान मेँ ,
तुम्हे ढूँढता था !
तब अक्सर तुम
अपने बालोँ को संवारते ,
छत पर टहलते ,
दिख जाती थीँ !
आज तुमसे
बहुत दूर आ गया हूँ
लेकिन
कुछ बूँदेँ
समेट लाया हूँ !
तुम्हारे होँठोँ की ,
बालोँ की चमक की ,
खिलखिलाती हँसी की !
जब भी अकेला होता हूँ
उन्ही बूँदोँ को छूता हूँ ,
दो पल के लिए
जी लेता हूँ ,
जिँदगी . . .


Friday, September 9, 2011

इंटैलिजेन्ट


मेरी जिन्दगी का
सबसे कठिन समय
एक्जाम देने मेँ गुजरता है !
मैँ इससे नहीँ डरता
लेकिन सोचता हूँ कि
जिँदगी मेँ
हमेँ क्योँ ;
हर पल
परीक्षा देनी पड़ती है ?
और
दिखाना पड़ता है
खुद को
इंटैलिजेन्ट !
ऐसा नहीँ है
कि मैँ
इंटैलिजेन्ट नहीँ हूँ !
लेकिन मैँ हूँ
जिँदगी मेँ
काम्पिटीशन का
कामयाब असहयोगी !

मैँने फर्स्ट आने की कोशिश की ….


मैँने एक बार फर्स्ट आने की कोशिश की !
कोशिशोँ मेँ पहाड़ को हिलाने का दम था !
लेकिन मुझे मेरे अपनोँ ने रोक दिया !
गुलाब की खुशबू
हर किसी को नहीँ मिलती !
न ही छू पाता है हर कोई
समुद्र की गहराईयोँ को !
दौड़ता रहा मैँ हर पल !
मैँने रुककर सोचने की कोशिश की !
सोच मेँ गंभीरता थी !
लेकिन कहीँ मेरा रास्ता बदल गया !
सोचा थोड़ी रफ्तार कम करता हूँ !
तभी एक नदी दिखाई दी !
पानी से प्यास बुझती है !
लेकिन मेरी प्यास बड़ी थी !
मैँ अपनी रूह को खोज रहा था !
शरीर के रहस्योँ को देख रहा था !
रहस्योँ ने मुझसे कहा ;
कि तुम वही हो
जो खुद तुम हो !
मैँने परछाईँयोँ मेँ
खुद को छिपाने की कोशिश की !

अधिकार


सूर्य की ये किरणेँ
जब तुम्हारे
होँठोँ को छूती हैँ
तो
सोचता हूँ
इन्हे
चुंबन करने का
क्या अधिकार है ?
तेज हवा
जब
तुम्हारे बालोँ को
उड़ाती है
तो सोचता हूँ
इसे
तुम्हारे करीब
आने का
क्या अधिकार है ?
तभी ध्यान आता है
कि ऐसा कर
प्रकृति
तुम्हारे
सौँदर्य को
बढ़ा रही है
और
भूल जाता हूँ
सब कुछ !

हो जाता हूँ गुम
तुम्हारी
इन बाहोँ मेँ
प्यार पाने ;
अपने अधिकार का
उपयोग करने !