Friday, September 9, 2011

अधिकार


सूर्य की ये किरणेँ
जब तुम्हारे
होँठोँ को छूती हैँ
तो
सोचता हूँ
इन्हे
चुंबन करने का
क्या अधिकार है ?
तेज हवा
जब
तुम्हारे बालोँ को
उड़ाती है
तो सोचता हूँ
इसे
तुम्हारे करीब
आने का
क्या अधिकार है ?
तभी ध्यान आता है
कि ऐसा कर
प्रकृति
तुम्हारे
सौँदर्य को
बढ़ा रही है
और
भूल जाता हूँ
सब कुछ !

हो जाता हूँ गुम
तुम्हारी
इन बाहोँ मेँ
प्यार पाने ;
अपने अधिकार का
उपयोग करने !

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