Wednesday, August 11, 2010

डर

कोई नहीँ है ;
चारोँ ओर
खुला आसमान है !
फिर भी हम
पंखोँ को खोलकर
उड़ने से डरते हैँ !

हाँ , हम डरते हैँ !
डरते हैँ ;
अनन्त मेँ
गुम न जाएँ
कहीँ !

हम
सत्य से
दूर भागते हैँ
क्योँकि हम
संसार को
सत्य मान वैठे हैँ !

2 comments:

  1. संसार तो सत्य है पर जीवन सत्य नहीं है ...अंतर्द्वंद दर्शाती अच्छी अभिव्यक्ति

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  2. भ्रम और सत्य मे यही तो फ़र्क है हम भ्रम को सत्य मान बैठे हैं इसलिये ही उलझे हुये हैं।

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