Friday, February 17, 2012

शान्ति


कितनी शान्ति है ,
तालाब के
इस ओर !
लगता है
तरंगेँ
रुक गयी हैँ !
झरने के
जल मेँ
गति होती है ;
प्रवाह का
मधुर
संगीत होता है !
लेकिन
तालाब के
इस जल मेँ
लगे
कमल के पत्ते
बुला रहे हैँ
मुझे
अपनी ओर !
पीपल की
इस हवा मेँ ,
जाने
किस ओर
जा रहा हूँ
मैँ !
तितली के
खुलते
और
बंद होते
पंखोँ
को
देखकर
लगता है
ये
आसमान
को
खुद मेँ
समेट रहे हैँ !
अस्तित्व
के
मोह मेँ
हर कोई
जीवित है !
नदी किनारे
लगे
इन वृक्षोँ
की
स्थिरता
कई
बर्षोँ तक है !
ये
नहीँ जानते
नदी
बहुत लम्बी है !
इनका
जीवन
छोटा है !
लेकिन
जीवन
इनके
पत्तोँ मेँ
प्रकाश
के
संश्लेषण
से
बनता है !
नदी का
जल भी
पहुँच जाता है आसमान मेँ
वाष्प बनकर !
घास पर
बिखरी
ओस
परिवर्तन
की
प्रतीक है !
संघर्ष
भी
परिवर्तित
हो
जाता है
शान्ति मेँ
एक दिन !
अशोक
के
कलिँग
युद्ध
की तरह ;
जाग
जाता है
मनुष्य !
भाग जाता है
भीड़ से
अकेलेपन
की ओर ;
बुद्ध की
तरह
पा लेता है
उद्देश्योँ को !

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