Friday, February 17, 2012

घर्षण


बाढ़ मेँ
डूबे हुए
घर
की
छत पर
बैठे
लड़के की
आँखोँ मेँ
संघर्ष की
चमक है !
जिंदगी
को
अनेकोँ ने
सारी रात
किसी
पेड़ पर
गुजारा है !
आसमान
मेँ
निकला
सूरज
शाम को
अस्त
हो जाता है !
पर्यावरण
को
छूता है
जब
सिगरेट का
धुआँ ;
हो जाता है
कैँसर
वायुमंडल को !
धूल के
उड़ने से
बच्चोँ
के
बालोँ की
सुन्दरता
बढ़ जाती है !
नहरोँ
के
किनारे
खेत मेँ
रहते
किसी
परिवार का
जीवन
करता है
इंतजार
पानी के
बढ़ने का !
शाम की
रोटी
को
नमक के
साथ
खाने मेँ
कितना
मजा
आता है !
यही है
जिँदगी
जो
सिखाती है
कि
हर सांस मेँ
खुशी को
महसूस करो !
काँटोँ पर
चलकर
पैरोँ की
ऊर्जा
बढ़ जाती है !
लम्बा सफर
तय
होता है
लाखोँ
कदम
चलकर !
किसी
पीपल के
नीचे
बसे
देवता मेँ
है
मुझे
विश्वास !
समाज की
परंपराएँ
हमारे पास
वर्षोँ से हैँ !
कोई
आग पर
चलकर
करता है
प्रयोग
आस्था का !
कोई
भिखारी
अपने
कटोरे के
सिक्कोँ को
देखता है ;
याद
आता है
कि
समझ का
गलत
उपयोग
किया है
उसने ;
लेकिन
पा लिया है
उसने
संतुष्टि को !
मोक्ष का
प्रयास
करते
रहता है
जीव ;
चौरासी करोड़
योनियोँ मेँ
घूमता है !
हर जन्म
के
साथ
निखरता है
कर्म !
आता है
जीव
अपने
लक्ष्य के
करीब
धीरे-धीरे !
मृत्यु
केवल
शरीर का
परिवर्तन
नहीँ करती ;
बनाती है
मनुष्य को
पुनर्जाग्रत भी !
स्वप्न मेँ
रंग
नहीँ होते !
जीवन
मेँ
रंगोँ को
भरने की
कोशिश
बनाती है
इंद्रधनुष
चरित्र का !
हार
और
जीत मेँ
उलझा
रहता है
जीवन !
कल
की
कल्पना मेँ
करता है
मनुष्य
खोज
प्रकाश की !
वेदोँ का
अध्ययन
छोड़
पढ़ता है
साइंस को !
साइंस
उत्पन्न
हुआ है
वेदोँ से ही !
जीवन का
अस्तित्व
तब
तक है
जब तक
हम
जानते हैँ
खुद को !
भूल रहे हैँ
हम
संस्कारोँ को ,
उत्पन्न
करना होगा
इन्हे
विचारोँ के
घर्षण से !
इसी मेँ है
सब कुछ ,
यही है
हमारे
उद्देश्य
का
प्रमुख
विषय !

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