Friday, February 17, 2012

आशीर्वाद


हे
अदृश्य शक्ति !
तुम्हारे बिना
मैँ कुछ भी तो नहीँ !
जब भी पढ़ने बैठता हूँ ,
पेन चलते चलते रुक जाता है !
मैँ मशीनोँ के बारे मेँ
नहीँ लिखना चाहता !
मैँ तो तुम्हारी खूबसूरती को
पन्नोँ पर उतारना चाहता हूँ !
लेकिन इस संसार मेँ
कोई भी
बिना कर्तव्य किये
नहीँ रह सकता !
यह वेदोँ का ;
तुम्हारा कथन है !
मैँ संसार मेँ रहना चाहता हूँ !
तुम्हारे प्रकाश मेँ चलना चाहता हूँ !
इसलिए
कभी-कभी
धूल चढ़ी पुस्तकोँ को
साफ कर लेता हूँ !
उसे भी
तुम्हारा ही
अंश मानकर
खुद को
कर्म मेँ
शामिल कर लेता हूँ !
जीव की यात्रा
हजारोँ बर्षोँ की है !
मनुष्य का शरीर भी
सहज ही प्राप्त नहीँ होता !
इसलिए चाहता हूँ ,
तुम्हारी इस
अदृश्य प्रतिमा को
कॉलेज के कैम्पस मेँ ,
स्टडी की टेबिल पर
या फिर
पुस्तक के अक्षरोँ मेँ
देखता रहूँ !
इसकी ऊर्जा से खुशी मिलती है !
फिर
खुशी का कंबल ओढ़कर
सोना चाहता हूँ !
सपनोँ से बनी
तपस्या मेँ
तुम्हारा आशीर्वाद होगा !
एक नई दुनिया के
सृजन मेँ
खो जाना चाहता हूँ ….

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