Friday, February 17, 2012

महत्वाकांछा


कभी-कभी
बहुत मुश्किल होता है
खुद को समझ पाना !
जिँदगी
मकसदोँ मेँ ;
गुम होती राहोँ मेँ
सिमट जाती है !
सत्ता के गलियारोँ मेँ
कुछ होने का प्रयास करते ,
हजारोँ की भीड़
उछल पड़ती है
अपने नेता को देखने !
तब मुश्किल होता है
निर्णय ले पाना
कि दूर खड़े होकर
देखा जाए
या फिर
करीब होने की
कोशिश की जाए !
बरगद के पेड़ पर
उछलकूद करती
गिलहरी को याद कर
मैँ सोचता हूँ
कि कई सारी बातेँ
छोटी होती हैँ ,
महत्वहीन होती हैँ !
उस महत्वहीनता से दूर
अपना महत्व
खुद बनाए रखने को
मेरा अतीत कहता है !
प्रश्न भी मैँ हूँ ,
उत्तर भी मैँ हूँ !
फिर भी इन
नये प्रश्नोँ मेँ
उलझ जाता हूँ !
तब मैँ कुछ नहीँ कर सकता !
केवल जा सकता हूँ
बचपन की जिँदगी मेँ ,
सुनहरे कल मेँ !

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