Friday, February 17, 2012

राह


लौट आया हूँ
वहीँ
जहाँ से
शुरू किया था
चलना राह पर !
राह
कुछ
बदल गई है !
छोटे पत्थर
घास से
कुछ
ढक गये हैँ !
तालाब के
किनारे
पीपल मेँ
बना लिये हैँ
पक्षियोँ ने
कुछ नये
घोँसले !
खेतोँ मेँ
लगे
गेहूँ मेँ
आ गई है
चमक !
सौँदर्य
विखर
रहा है
प्रकृति की
गोद मेँ !
परन्तु
मैँ
सोच रहा हूँ
कि
रास्ता
छोड़ देता है
हमेँ कहाँ ?
मंजिल की
चाह मेँ
खो गये हैँ
सपने !
घर
लौटते
इन
पक्षियोँ को
देखकर
सोचता हूँ
शान्ति के
प्रयास मेँ
बहुत
दूर
आ गया हूँ !
लेकिन
लौटकर
अब
कहाँ जाऊँ ?
धूप के
अस्तित्व मेँ
जीवित है
अभी
मेरा विश्वास !
कि
मैँ
तुम्हे
खोज सकता हूँ !
रात की
चाँदनी मेँ
मैँ
तुम्हारे
पास आकर
तुम्हारी
उँगलियोँ का
स्पर्श
पाना चाहता हूँ !
करना
चाहता हूँ
कुछ बातेँ
जिनमेँ
छुपी है
राह
सत्य की !

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