फिर याद आते हैं वो दिन ,,,,,,,,,,
मिट्टी के वो खिलौने ,,,,,,,,,,
रिमझिम बारिश ,,,,,,,,
फुलझड़ियाँ ,,,,,,,,,,,
जब हम बचपन की तलाश करते हैं ,,,,,,,
हम बड़े हो जाते हैं। ……।
भीतर से बच्चे ही रहते हैं ,,,,,,,
< सिद्धार्थ रेजा >
< समर्पित ,,,,,,,,, to mr. kailash satyarthi,,,,, >