Friday, June 29, 2018

तो ये कहानी है तीन लोगों की ... अलग अलग तरह के तीन लोगों की .... और उनमें पहला है केरोली टेकास

Károly Takács...Image result for karoly takacs

जिसने सपना देखा olympic में जीतने का ... केरोली का दायां हाथ ; जिससे वो शूटिंग करता था ; एक एक्सीडेंट में चला गया ... फिर भी वो नहीं रुका ... उसने अभ्यास किया अपने बायें हाथ से और लगातार दूसरी बार जीता ...

दूसरे का नाम है जुलियो इग्लेसियस

Julio Iglesias ...Image result for julio iglesias फुटवाल में गोलकीपर था ... एक्सीडेंट में पैरों में चोट लगी तो दो साल चल नहीं पाया .. बिस्तर पर पड़े पड़े ही गिटार बजाना शुरू किया ; और तब उसे मालूम चला कि उसमें म्यूजिक है ... तो म्यूजिक की राह पकड़ ली ... कई अवार्ड जीते , जिसमें ग्रैमी अवार्ड शामिल है ...

तीसरा शख्स कोई एक शक्श नहीं है ... वो हर किसी में एक बहानेबाज के रूप में हमेशा मौजूद रहता है ... वो खुद ये तय कर लेता है कि वो इस काम को नहीं कर सकता ...
ऐसे शख्स के लिए ही हेनरी फोर्ड ने कहा है कि अगर आपको लगता है कि आप किसी काम को कर सकते हैं या आपको लगता है कि आप नहीं कर सकते ; तो दोनों ही स्थितियों में आप सही होते हैं ..
तय कीजिये कि आप कौन से शख्स बनना पसंद करेंगे ... 

Saturday, November 5, 2016

सर्वस्व

अब कुछ न रहा ! हर कोशिश हार गयी । लड़ाई ख़त्म हो गई मंज़िल से ।।।। कोई बात ही न रही ।।। हौंसलों को जगाने का ज़ज़्वा न रहा ।।।। अब सौंप दी है पतवार तुझे ऐ मालिक ......।।। जहाँ चाहे ले चल...
जैसे चाहे चला मुझे.. पकड़ ली है मैंने तो उंगली तेरी ।।
अब कोई मुश्किल नहीं ... कोई डर भी नहीं... कुछ पाना नहीं ... खोने की चिंता है .... जो है ... सब तेरा है ... छोड़ दी मैंने डोर .... पतंग की ।।। जहाँ हवा उड़ा ले जाये....
बहुत हाथ पैर चलाये... बटोरने के लिए... कुछ हाथ न आया ।।। कोसों चला ... ढूंढने के लिए... मिला ही नहीं  ।।।।
अब थक गया हूँ मालिक ... रुक गया हूँ ... न चल पाउँगा अब .... अब तो सब खो गया है...
खड़ा हूँ तेरे सामने ।।।। तुझे प्रणाम भी कैसे करूँ... हाथ भी तेरे हैं .... झुक भी कैसे जाऊं तेरे सामने .. तन पर मेरा नियंत्रण नहीं है ।।।।
झुकाये भी तू ... उठाये भी तू....  चलाये भी तू.... गिराये भी तू.... मैं भी तू ... तू भी तू... सब तू।।।।।
फूल तू ... कांटे भी तू ... पहाड़ भी तू .... खाई भी तू ... जीते भी तू ... हारे भी तू ...
ये खूबसूरत हवाएँ तेरी ...आँधियाँ भी तेरी...
कहे भी तू... सुने भी तू ...
सर्वस्व तू.....

Friday, October 14, 2016

जूनून

हार जाने का भी अपना मज़ा है......
फिर लड़ने का हौंसला जो मिलता है...
ख्वाबों की अहमियत का पता...
सफ़र में ही चलता है...
जीने की बजहें तो हैं बहुत...
अपनी मंज़िल पाने का...
जूनून जो मिलता है....
फिर जमीं पर कुछ और ही होता है....
आसमां और समुन्दर का मिलन जो होता है...

Saturday, January 10, 2015

फिर कुछ ....

मुझे फिर लौट आने दो ;
उसी छोटे से ;
कच्ची दीवारों के ;
छोटे घरोंदे में ........

जहाँ फुदकती रहती थी ;
छोटी चिड़िया ;
जिसे निहारा करती थीं ;
मेरी आँखें देर तक ;

और वो गिलहरी भी ;
जो नीबू के उस छोटे पेड़ पर ;
चढ़ती उतरती थी ;

उस अनजान दुनिया के कोने में ;
फिर बस जाने दो मुझे ;
इससे पहले की गुम हो जाऊं मैं ;
तेज़ चलती दुनिया में ;

शहर के किनारे फैले ;
शांत तालाब में ;
रोशनियों की चमक ;
लुभाती है , बुलाती है ;

लेकिन तब मेरे पास ;
वो काँटा नहीं होता ;
और ना ही वो आंटे की गोलियां ;
मछलियों के साथ खेलने के लिए ;

मेरे पास कुदरत की तारीफ के लिए ;
ढेरों शब्द होते हैं ;
पर वो ख़ामोशी नहीं ;
जिसमें गुम हो जाता था
मैं घंटों तक ;

और न वो नज़र थी ;
जो खूबसूरत लड़कियों को
निहारा करती है ;
गाँव की उन गलियों में ;
किसी छोरी की मासूम मुस्कराहट ही
ख़ुशी बिखेरा करती थी ;

मुझे उस मस्ती में फिर डूब जाने दो ;
जो कीचड़ की बूंदों से उछलती थी ;
इन्द्रधनुष के रंगों से बरसती थी ;

तितली पकड़ने के उस जूनून में
डूब जाता था जब मैं ;
पेड़ पर रुकी हुई
बारिश की उन बूंदों को
जमीं पर लाने का मज़ा था ;

फिर वही ;
जैसे सब कुछ खो गया है ;
इस सवाल में ;
कि हमारा फेंका पत्थर ;
पानी में कितने बार उछलता है......

Wednesday, October 22, 2014

फिर याद आते हैं वो दिन ,,,,,,,,,,
मिट्टी के वो खिलौने ,,,,,,,,,,
रिमझिम बारिश ,,,,,,,,
फुलझड़ियाँ ,,,,,,,,,,,
जब हम बचपन की तलाश करते हैं ,,,,,,,
हम बड़े हो जाते हैं। ……।
भीतर से बच्चे ही रहते हैं ,,,,,,,
< सिद्धार्थ रेजा >
< समर्पित ,,,,,,,,, to mr. kailash satyarthi,,,,, >


Sunday, May 18, 2014

फिर वो सुबह देखी मैंने ,
जब मैंने कोयल को गुनगुनाते सुना ;
सूर्य की किरणें जब आसमां मैं फैलने को थीं ;
घास पर बिखरे मोतियों को देखा ;
कई दिनों तक सोने के बाद ,
मैंने गहरी साँस ली ;
खिड़की से झाँका , बाहर की ओर ;
पीपल मुस्कुरा रहा था;
गिलहरी उछल कूद रही थी ;
बाकई अद्भुत था ;
कुदरत का एक छोटा सा झरोखा,,,,,,,,,,,,,,,



Monday, May 12, 2014

समुंदर के भीतर दुनिया बसती है ;
क्या हमारे भीतर भी समुंदर बसता है ;
वही समुंदर जिसमें मछलियाँ उछलती हैं ;
हम लहरों के शोर में ;
खामोशी को भूल जाते हैं  !