Saturday, September 25, 2010

ध्यान एक होने की अवस्था है ।

आत्मा मुक्त है !
शरीर भौतिक है !
इसे तो नष्ट हो जाना है ;
लेकिन जो महसूस करते हैँ
कि आत्मा कर्म करती है ;
वे व्यर्थ का प्रयत्न करते हैँ !
वहीँ जीवन का सुकून खो जाता है !
वहीँ हम अशांत होते जाते हैँ !
फिर अकेलेपन को ढूँढ़ते हैँ !


जीवन का अर्थ संसार के शोर मेँ है !
तेज भागती कार मेँ जिँदगी है !
सिगरेट का कश ध्यान का अनुभव है !
जब हम हर प्रक्रिया से नहीँ गुजरेँगे
तो सीखना नहीँ होगा !
त्याग का अर्थ पाने के बाद है !
पाने मेँ मेहनत होती है !
मेहनत मेँ समय लगता है !
इतने ही समय मेँ हम एक हो सकते हैँ !
एक होने का अनुभव ही श्रेष्ठ है
मैँ और तुम नहीँ हैँ ,
और कोई भी नहीँ है !
हर कहीँ वही है ,
जो जीवन देता है ;
जो मुक्ति की दिशा देता है !
हम उससे दूर नहीँ जा सकते !
यही शाश्वत है !
यहीँ जाकर बुराई की कल्पना
मिट जाती है !
यहीँ जाकर अस्तित्व की सुबह
हो जाती है !

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