Friday, April 2, 2010

आवरण

जिँदगी को ताश के पत्तोँ की तरह नहीँ समझ सकते । इसका महत्व हर लमहे को छूकर पता चलता है । किनारोँ से जब लहरेँ टकराती हैँ तो शोर होता है । लेकिन गहरे समुंदर मेँ कोई शोर नहीँ होता । वहाँ शांति होती है । बाहर के शोर और अंदर की शांति मेँ यही फर्क है । हम भीतर से कैसे हैँ कोई नहीँ जानता । हम भी नहीँ जानते । फूलोँ की खुशबू को हवा फैलाती है लेकिन यही खुशबू ऑक्सीजन मेँ नहीँ मिलती । एक दीवार है जो हमारी इंद्रियोँ को मन से अलग करती है । जिँदगी इसी दीबार के रहस्य पर चलती है । सारी जिँदगी यही रहस्य हमेँ पकड़े रखता है । कहीँ न कहीँ हम भी समझ जाते हैँ कि कोई रहस्य है लेकिन उस रहस्य को जानने का प्रयास हम नहीँ करते ।


मन पर जो सांसारिक आवरण होता है , वह समय के साथ बढ़ता जाता है । हम भूल जाते हैँ कि हम कौन हैँ । अपना अस्तित्व भूलकर संसार के मोह मेँ उलझ जाते हैँ । इसे ही सुख और दुख का कारण मान लेते हैँ । अनेकोँ जन्मोँ के हमारे कर्म रुक जाते हैँ । जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिये हमने जन्म लिया है वह याद नहीँ रहता । जीवन की दिशा तो उसी उद्देश्य पर निर्भर है । कर्मोँ की श्रंखला बहुत बड़ी है । हम सीमित समय मेँ कुछ ही काम कर सकते हैँ । जब तक हम कर्मोँ के ऋण से मुक्त नहीँ हैँ , हम ईश्वर की ओर नहीँ मुड़ सकते । वहाँ वही पहुँच सकता है जो कर्मोँ के ऋण से मुक्त है ।


मुक्ति का अर्थ है छूटना । जब हमेँ लगने लगता है कि संसार एक बंधन है , हमारी मुक्ति के प्रयासोँ की शुरूआत हो जाती है । हम उस तरफ धीरे धीरे झुकने लगते हैँ , जहाँ एक दिन सबको जाना है । बस जरूरत एकाग्रता की होती है । हमेँ सांसारिक जरूरतोँ को इंद्रियोँ के संयम से पूरा करना पड़ता है । हमेँ शरीर की समस्त आवश्यक्ताओँ भूख , प्यास , सेक्स , ऐश्वर्य और प्रसिद्धि पर नियंत्रण रखना पड़ता है । कहीँ हम ऐसा कर पाते हैँ और कहीँ नहीँ कर पाते । फिर संसार की ओर झुकना पड़ता है । मोह छूट जाता है लेकिन संसार के प्रति समर्पण का भाव होना चाहिये । जीवन के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिये । अहंकार का भाव शून्य होना चाहिये । यहाँ मनुष्य को मुश्किल जाती है । वह खुद को कुछ समझता है । भूल जाता है कि वह इस संसार मेँ रहने नहीँ आया है । वह जिँदगी के नियम समझता रहता है । समय के साथ वह खुद को देखता रहता है । कभी उसे लगता है कि वह सही मार्ग था , जिसे वह छोड़ आया है । उसे याद आता है कि शाम को घर आने को भूलना नहीँ कहते । लग जाता है तपस्या मेँ । ध्यानमग्न हो जाता है मोक्ष की प्राप्ति मेँ ।

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